मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित बूढ़ी काकी एक बूढ़ी असहाय महिला की कहानी है जो अपने भतीजे बुद्धिराम के साथ रहती है, बुद्धिराम की चिकनी चुपड़ी बातो मे आकर काकी अपनी सारी जायदाद बुद्धिराम के नाम करदेती है। अपने भतीजे और बहू के अत्याचार मे काकी का बस एक ही सहारा है बुद्धिराम की बेटी लाडली।
Rated 5 out of 5
Naglash –
जैसा कि कहानी का नाम है ये एक बूढ़ी महिला की कहानी है जो अपने भतीजे की चाल में फंस कर अपनी सारी जायदाद उसके नाम कर देती है, उसकी बहु भी उस पर अत्याचार करती है ,बस बूढ़ी काकी को अपनी पोती लाडली का ही सहारा है
Rated 5 out of 5
Gireesh Dewangan –
शीर्षक- बूढ़ी काकी
लेखक- मुंशी प्रेमचंद
प्रकाशन वर्ष – 1921
बूढ़ी काकी प्रेमचंद जी की सबसे प्रसिद्द कहानियों में से एक है. भारतीयों के मन को इतनी गहराई से समझ कर सच लिखने वाला कोई और लेखक न होगा. कहानी शुरू होती है जहां एक वृद्धा अपनी सारी जायदाद अपने भतीजे के नाम कर चुकी है. भतीजे ने जायदाद नाम करवाने के पहले वृद्धा को बड़े सब्ज बाग़ दिखाए पर, जायदाद आते ही भतीजा और उसकी पत्नी को वृद्धा बोझ लगने लगती है. इसलिए उसका ज़रा भी ध्यान नहीं रखा जाता है. मुख्य कहानी उस दिन की है जब इनके यहाँ एक भोज होता है. इस कहानी का अंतिम दृश्य इतना करुण और हृद्य विदारक है इसे प्रथम बार पढने पर हर कोई भौचक्का रह जाता है और आँखों में आंसू भी आ सकते हैं. हर मनुष्य के जीवन में ऐसा वक्त आता है जब उसे परिस्थितियों से हारकर ऐसा कुछ करना पड़ता है जो उसने कभी सोचा भी न हो. ऐसा क्या होता है ये आप पढ़कर ही जान पाएंगे.
shivammathers –
मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित बूढ़ी काकी एक बूढ़ी असहाय महिला की कहानी है जो अपने भतीजे बुद्धिराम के साथ रहती है, बुद्धिराम की चिकनी चुपड़ी बातो मे आकर काकी अपनी सारी जायदाद बुद्धिराम के नाम करदेती है। अपने भतीजे और बहू के अत्याचार मे काकी का बस एक ही सहारा है बुद्धिराम की बेटी लाडली।
Naglash –
जैसा कि कहानी का नाम है ये एक बूढ़ी महिला की कहानी है जो अपने भतीजे की चाल में फंस कर अपनी सारी जायदाद उसके नाम कर देती है, उसकी बहु भी उस पर अत्याचार करती है ,बस बूढ़ी काकी को अपनी पोती लाडली का ही सहारा है
Gireesh Dewangan –
शीर्षक- बूढ़ी काकी
लेखक- मुंशी प्रेमचंद
प्रकाशन वर्ष – 1921
बूढ़ी काकी प्रेमचंद जी की सबसे प्रसिद्द कहानियों में से एक है. भारतीयों के मन को इतनी गहराई से समझ कर सच लिखने वाला कोई और लेखक न होगा. कहानी शुरू होती है जहां एक वृद्धा अपनी सारी जायदाद अपने भतीजे के नाम कर चुकी है. भतीजे ने जायदाद नाम करवाने के पहले वृद्धा को बड़े सब्ज बाग़ दिखाए पर, जायदाद आते ही भतीजा और उसकी पत्नी को वृद्धा बोझ लगने लगती है. इसलिए उसका ज़रा भी ध्यान नहीं रखा जाता है. मुख्य कहानी उस दिन की है जब इनके यहाँ एक भोज होता है. इस कहानी का अंतिम दृश्य इतना करुण और हृद्य विदारक है इसे प्रथम बार पढने पर हर कोई भौचक्का रह जाता है और आँखों में आंसू भी आ सकते हैं. हर मनुष्य के जीवन में ऐसा वक्त आता है जब उसे परिस्थितियों से हारकर ऐसा कुछ करना पड़ता है जो उसने कभी सोचा भी न हो. ऐसा क्या होता है ये आप पढ़कर ही जान पाएंगे.